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कविता

बदलते विश्व के बारे में

राकेशरेणु


हम सो रहे होंगे
और हमारे सपने में होगी तितली
जब तितलियों के पंख काटे जाएँगे
हम मुस्करा रहे होंगे उनकी रंग-बिरंगी छटा पर
हम सो रहे होंगे
और निगल ली जाएगी पूरी दुनिया
संभवतः जागने पर भी करें हम अभिनय सोने का
क्योंकि शेष विश्व सो रहा होगा उस वक्त
और विश्वधर्म का निर्वाह होगा हमारा पुनीत कर्तव्य
हम सो रहे होंगे और यह होगा
कोई थकी-हारी महिला
निहारेगी दैत्याकार विज्ञापन मुख्य मार्ग पर
और फड़फड़ाएगी अपने मुर्गाबी पंख
हम सो रहे होंगे इस तरह
और किसी की प्रेयसी गुम जाएगी
अचानक किसी दिन किसी की पत्नी
किसी का पति गायब हो जाएगा
किसी का पिता अगली बार
उपग्रह भेजेगा सचित्र समाचार अंतरिक्ष से
नवीन संस्कृति की उपलब्धियों के -
ये जो गायब हो गए थे अचानक
लटके पाए गए अंतरिक्ष में त्रिशंकु की तरह
उनकी तस्वीरों की प्रशंसा करेगी पृथ्वी की सत्ता
ड्राइंगरूम में सजाना चाहेंगे उसे लोग
और तिजारत शुरू हो जाएगी
अतृप्त इच्छाओं वाले उलटे लटके लोगों की
हम सो रहे होंगे
और बदल दी जाएगी पूरी दुनिया
इस तरह हमारे सोते-सोते
बहुत देर हो चुकी होगी तब
नींद से जागेंगे जब हम 


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